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बीड़ी: भारतीयता का प्रतिक !!!

misirpuran
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बहुत दिनों से मेरे दिमाग में तूफान मचा हुआ था, आखिर बीड़ी जैसे तुच्छ चीज पर मैं इतना क्यूँ माथापच्ची कर रहा हूँ | सवाल जायज तो था कि चीज तुच्छ है, पर मैं इसे नकार नहीं पा रहा था | सो अपने मगज के भावों को इकठ्ठा करने लगा कि आखिर कारण क्या है जो मुझे इस तरह परेशान कर रही है | आखिर मैं भी समाज के उस निकृष्ट बुध्दिजीवी नामक जाति से सरोकार रखता हूँ, जिनका काम अनर्थ में अर्थ ढूँढना ही है | सो मैं भी इसी व्यवहार से त्रस्त जुट गया इस तुच्छ के सूक्ष्म विवेचन में |

तमाम तर्कों का निष्कर्ष यही आया कि क्यूँ न बीड़ी को राष्ट्रीय धूम्रपेय घोषित कर दिया जाए ? कारण अनेक मिले जो मेरे भावनाओं को उसी तरह संपुष्ट कर रहे थे जिस तरह श्वास के रोगी को च्यवनप्राश |

आखिर सम्पूर्ण देश में बीड़ी का सेवन जिस तरह से होता है तो यह अंदाज लगाना सहज है कि यह सर्वसुलभ और सर्वप्रिय धूम्रपान है | और तो और बढती महंगाई ने इसे और लोकप्रियता दे दी है | सिगरेट के आकाश छूती कीमतों ने इसे सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय कि श्रेणी में ला खड़ा किया है |

कौन कहता है कि बीड़ी गरीबों और मजदूरों का धूम्रपेय है !!!??? कभी राजधानी के सड़कों पर गौर से देखिये महंगे कारों में बैठ बीड़ी के शौक फरमाते कई रईस मिलेंगे | कलकत्ता में बंगाली बाबुओं कि खास पसंद यही है | मद्रास और महाराष्ट्र के नुक्कडों पर बीड़ी पीने वालों को सहज देख सकते हैं | भारत के उत्तरी पश्चिमी इलाके जहाँ हुक्के का प्रयोग ज्यादा होता है वहाँ भी इनके आभाव में बीड़ी को प्रयोग में लिया जाता है | बिहार, उत्तरप्रदेश इत्यादि में तो महिला वर्ग कि यह खास पसंद है | अब इतना लोकप्रिय कोई पेय जो इतनी बड़ी आबादी सेवन करती है, फिलहाल बीड़ी के अलावे अन्य नहीं है | अब ये बीडी कि ही महिमा ही जो गुलज़ार जैसे कवियों ने जिगर से बीडी जलवा दी |

आखिर हो भी क्यूँ नहीं ? १९३० इस्वी में गाँधी जी ने तो विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार और स्वदेशी चीजों के प्रसार पर जोर दिया था | अब लोगों ने इन वस्तुओं में धुम्रपेय बीड़ी को भी शामिल किया | स्वरोजगार और कुटीर उद्योग के बहुत बड़े व्यवसाय को बीड़ी ने कमान संभाला | आज भी यह बीड़ी किसी को रोजगार के पैसे से तो किसी को गर्म धुंवे से पे भरता है | और जो सेवन नहीं करते उनके नथुनों को भी अपने कसैंधे गंध से अपनी उपस्थिति का बोध कराता है |

अब दिल्ली के डीटीसी और ब्लू लाइन बसों में ड्राइवर के पीछे यह जरुर लिखा रहेगा के धूम्रपान निषेध (NO SMONING) है, मगर इन बसों के ड्राइवर और कंडक्टर आराम से बीड़ी के धुंए के छल्ले उड़ाते नज़र आयेंगे | शायद बीड़ी यहाँ धूम्रपान कि श्रेणी में नहीं आता | और क्रमशः यही हालत सभी जगहों पर भी है | सबसे मजेदार बात हरिद्वार और उत्तर भारत के अन्य तीर्थ स्थल पर देखने को मिलता है | इस देश कि सभ्यता और संस्कृति को पढ़ने आये विदेशी शैलानियों के कंधे से लटके झोले और हाथों में बीड़ी के बंडलों का ढेर होता है | यह नज़ारा कुम्भ के दौरान आम है | गंगा के घाट पर इन विदेशी शैलानियों को बीड़ी के मजे लेते हुए प्रायः देखा जाता है | देश में पर्यटन व्यवसाय को अप्रत्यासित लाभ पहुँचाने में बीड़ी उद्योग के सहयोग को नकारा नहीं जा सकता |

मुझे अपने इस खोज में बीड़ी के बारे में जो तथ्य सामने आये वो बहुत ही रोचक लगे | पहली बात तो ये देशी है और इसमें मिलावट कि कोई गूंजाइस नहीं है | सौ प्रतिशत खरा सोने कि तरह, केंदु के पत्ते में लिपटा तम्बाकू ही मिलेगा | सिगरेट में तो लोग तरह तरह के प्रयोग करते हैं, अंदर कि तम्बाकू निकाल उसके साथ गांजा और ना जाने क्या क्या मिलावट कर पिते हैं | अब मिलावटी चीजों में वो बात कहाँ जो एक शुद्ध और सहज उपलब्द्ध चीजों में है | अब आपने वो गाना तो सुना ही होगा कि “उन आँखों का हंसना ही क्या, जिन आँखों में पानी न हो…” तो आँखे पनीली अगर बनानी है तो बीड़ी मदद कर सकती है | किसी बीड़ी पीनेवाले के आँखों में झांक के देखिये मेरे बातों का प्रमाण मिल जाएगा | लाल सुनहरी आँखें जिनमे पानी भरी होती हैं | अब ये बात दीगर है कि चेहरे और आँखों पे सूजन भी दिख सकती है | सस्ता होने के कारण आप इसे दूसरों के साथ बांटने में संकोच नहीं करते, मतलब आप गाहे बगाहे बीड़ी के माध्यम से भाईचारा फैला रहे हैं जो देश के राष्ट्रीय एकता में सहायक सिद्ध हो सकती है | अब जो बीड़ी पीते हैं वो अन्य उत्पादों को भी लाभ पंहुचाते हैं | मसलन दियासलाई (माचिस) का इस्तेमाल बीड़ी पीने वाले बहुत करते हैं | सिगरेट महँगा शौक है तो शहरों में लाइटर उपलब्द्ध है मगर बीड़ी जैसी सस्ती चीजों के लिए माचिस का प्रयोग सार्थक है | तो यह एक पंथ दो काज वाला उद्योग है | लोगों को स्वरोजगार देने के साथ साथ सरकार को वाणिज्य में संबल प्रदान करने में बीड़ी का बहुत बड़ा हाथ है | मतलब यही है कि देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर | सरकार को तो इसके इन पहलुओं को ध्यान में रखकर इसे कर मुक्त कर देना चाहिए |

काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कठियावाड से लेकर बंगाल के कछार तक बीड़ी सहज ही उपलब्द्ध है जो न लोगों का प्रिय सगल है बल्कि देश कि आर्थिक इकाई को भी मजबूती दे रहा है | अब इस तुच्छ धुम्रपेय को सरकार तुच्छ समझ नज़रंदाज ना करे तो बेहतर होगा | सर्वहित में तो यही होगा कि इसे राष्ट्रिय सम्मान दे दिया जाए राष्ट्रिय धुम्रपेय घोषित कर | आखिर इस देश कि खोज है यह सम्मान तो इसे मिलना ही चाहिए | आखिर बीड़ी भारतीयता का ही तो प्रतिक है | अगर मोर को जो भारत के कुछ ही हिस्सों में पाया जाता है राष्ट्रिय पक्षी है तो सम्पूर्ण भारत में मिलनेवाले बीड़ी को यह सम्मान क्यूँ नहीं ?

जब डा० राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति हुए तो राष्ट्रपतिभवन में खैनी का प्रवेश हुआ था | अन्य राष्ट्रिय नेताओं ने भी अपने अपने प्रदेश और पसंद कि चीजों को देश के सर्वोच्च भवनों तक पहुंचाया | अब बस बीड़ी को इंतजार है ऐसे ही किसी कर्मठ नेता कि जो इसे वहाँ ले जाए जहाँ इसे वास्तविक सम्मान मिल सके |

( यह आलेख धूम्रपान के समर्थन में नहीं बल्कि सरकार द्वारा लगाए जा रहे तमाम प्रतिबंधों के बावजूद इसके बढते प्रयोग पर दृष्टिगत है | और लेखक ने बीड़ी पीनेवालों से त्रस्त होकर ही यह कदम उठाया है |)

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